Govt. Maharaj Acharya Sanskrit College
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e-Granthalaya


सन् 1852 में इस राजकीय महाविद्यालय की स्थापना के कुछ वर्षों बाद से ही ज्ञान के पुरोधा शिक्षकों एवं पिपासु छात्रों को अपनी सेवाएं प्रदान करने वाला यह पुस्तकालय अनेक स्मृतियों को अपने में संजोए हुए है. 
विद्यार्थियों को अधिकाधिक ज्ञान की प्राप्ति हो सके, इस हेतु उनकी सुविधा के लिए पुस्तकालय में प्राप्त ग्रन्थों को प्रारम्भिक काल में महाविद्यालय के प्राचार्य अपने स्तर पर ही संधारित करते थे. साथ ही अन्य शिक्षकगण अपने विषयगत ग्रन्थों को छात्रों को उपलब्ध करवाकर उनका लेखन करते थे.
देश की स्वाधीनता के पश्चात जयपुर रियासताधीन पोथीखाने के अनेक दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथ इस पुस्तकालय को हस्तान्तरित किए गए. जोधपुर स्थित प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के जयपुर स्थित कार्यालय से भी ग्रंथ एवं पाण्डुलिपियाँ प्राप्त की गई.
इसके पश्चात पुस्तकालय की विभिन्न सेवाओं को ध्यान में रखते हुए महाविद्यालय की राज्याधीनता से पूर्व ही श्री फंडा लाल शर्मा पुत्र श्री गटन महाराज को वर्ष 1958 में महाराज सवाई माधो सिंह द्वितीय द्वारा पुस्तकालयीय सेवाओं एवं रखरखाव हेतु विशेष रूप से पुस्तकालय लेखक के रूप में सात रुपए प्रति मास वेतन पर नियुक्त किया गया. ढुंढाड़ी भाषा के कवि श्री फंडा लाल ने तत्कालीन विद्वानों से संपर्क कर उनके द्वारा लिखित एवं संपादित ग्रन्थों को - जिनमें प्राचीन पाण्डुलिपियाँ तथा लिथो प्रिंट की पुस्तकें भी थीं - बड़े ही समर्पित भाव से पुस्तकालय के लिए संग्रहित किया. यह ग्रंथ आज भी पुस्तकालय में सुरक्षित हैं. पोथीखाने में अवस्थित अनेक दुर्लभ ग्रंथ भी सवाई राम सिंह जी के समय राज परिवार से पुस्तकालय को प्राप्त हुए.
24 अगस्त, 1968 को श्री सत्यनारायण चौहान को राज्य सरकार द्वारा पूर्णकालिक रूप से पुस्तकालयाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया. वर्तमान में इस महाविद्यालय में श्री शैलेंद्र जैन पुस्तकालय अध्यक्ष पद पर कार्यरत है। आपके पदस्थापन के तुरन्त बाद ही पुस्तकालय गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने के लिए यहाँ अवस्थित सभी 23000 पुस्तकों के रिकॉर्ड को कंप्यूटरीकृत किया, जिसका लाभ यह मिला कि सूचना / पुस्तक की खोज प्रक्रिया में लगने वाला समय बहुत ही कम रह गया और पाठक को वांछित सूचना / ग्रंथ तत्काल उपलब्ध होने लगे.
लगभग 30’ x 40’ क्षेत्रफल में अवस्थित पुस्तकालय में वर्तमान में 26000 ग्रन्थों का विशाल संग्रह है. इस संग्रह में जयपुर रियासत के अधीन संचालित पोथीखाने से प्राप्त अनेक महत्वपूर्ण हस्तलिखित ग्रंथ भी हैं. महाविद्यालय में संचालित संस्कृत से संबंधित समस्त वेद, धर्मशास्त्र, दर्शन, साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष, दर्शन जैसे महत्त्वपूर्ण संस्कृत विषयों के अतिरिक्त अन्य आधुनिक विषयों यथा राजनीतिक विज्ञान, इतिहास, हिन्दी एवं अंग्रेजी से संबंधित पुस्तकों एवं शोधपरक ग्रन्थों का इस पुस्तकालय में विशाल संग्रह है. वेद, पुराण, उपनिषद, गृह्यसूत्र, श्रौतसूत्र, शुल्बसूत्र, रामायण, महाभारत इत्यादि सभी प्रकार के संस्कृत एवं संस्कृति सम्बन्धी ग्रन्थों को यह पुस्तकालय अपने में समेटे हुए है जिसका कि शिक्षकगण / विद्यार्थी निरन्तर लाभ ले रहे हैं. उदाहरण स्वरूप जयपुर निवासी मेजर (रि.) सुरेन्द्र नारायण माथुर द्वारा लिखित वृत्तान्तपरक शोध पुस्तक ‘हिन्दू के केल्टिक स्वजन’ – जो कि यूरोप में प्राचीन काल से बसे केल्टिक नागरिकों की धर्म-संस्कृति और भारतीय धर्म-संस्कृति के मध्य समानता सिद्ध करती है – के लेखन में इस पुस्तकालय द्वारा उपलब्ध कराए गए प्राचीन संस्कृत साहित्य का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है. इसके अतिरिक्त राजस्थान की बावड़ियों पर जयपुर के ही निवासी डॉ. सन्तोष कुमार मिश्र द्वारा किए गए शोध कार्य – जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ की वार्षिक पत्रिका में मुखपृष्ठ पर स्थान दिया गया – में भी इस पुस्तकालय का उल्लेखनीय योगदान रहा.
यह पुस्तकालय संस्कृत जगत के साथ-साथ सामान्य जनमानस में भी अपना विशिष्ट स्थान रखता है. सामाजिक अथवा धार्मिक स्तर पर उत्पन्न कोई भी समस्या हो अथवा विद्वत्जनों के मध्य मतभेद, पुस्तकालय में अवस्थित प्राचीन प्रामाणिक ग्रन्थों यथा निर्णय सिन्धु, धर्मसिन्धु, जयसिंहकल्पद्रुम, समराङ्गणसूत्रधार की सहायता से सर्वमान्य समाधान कर दिया जाता है. संस्कृत एवं संस्कृति विषयक प्राचीन ग्रन्थों की उपलब्धता के कारण ही पास ही अवस्थित राजस्थान विश्वविद्यालय के अनेकानेक शिक्षकों द्वारा इस पुस्तकालय का लाभ लिया जाता है.
पुस्तकालय में internet सेवाओं के लिए High speed fiber connection उपलब्ध है. साथ ही reprography सेवाओं हेतु अत्याधुनिक फ़ोटो कॉपियर भी पुस्तकालय में उपलब्ध है.
पुस्तकालय की समस्त गतिविधियों यथा शिक्षकों / विद्यार्थियों / शोधार्थियों को पुस्तक का आदान-प्रदान, संधारण इत्यादि कार्यों के संचालन एवं साथ ही अन्य पुस्तकालयों और उनके सदस्यों से online connectivity स्थापित करने के लिए भारत सरकार के राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (NIC) द्वारा तैयार Library Automation Software e-Granthalaya का उपयोग इस पुस्तकालय में किए जाने का कार्य भी प्रारम्भ हो चुका है. प्रारम्भिक चरण में लगभग 3500 पुस्तकें इस सॉफ्टवेयर पर अपलोड भी कर दी गयी हैं. शीघ्र ही पुस्तकालय की समस्त गतिविधियाँ इस e-Granthalaya पर operational हो सकेंगी.

(COLLEGE Research Journal)